कोजागिरी

 


(चाराक्षरी काव्य) 

पूर्ण चंद्र

 गगनात

कोजागिरी

अश्विनात. 


सृष्टी रूप, 

स्थूल सूक्ष्मी. 

वास करे, 

आज लक्ष्मी. 


गोळा होती, 

मित्र सारे. 

गप्पा गोष्टी, 

न्यारे वारे. 


पेढे-दुध

प्रसादात, 

पावभाजी

ताटलीत. 


प्रियकरा

चंद्र भासे

प्रियामुख. 

मन हासे. 


चम चम , 

आज चंद्र. 

शुभ्र दुध, 

शुभ्र चंद्र. 


शरदाचे

शुभ्र रौप्य, 

मना सांगे

सृष्टी गौप्य. 


पाहू नका

इतरत्र, 

बना आज

सृष्टी मित्र. 

🙏🙏





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